Friday, March 7, 2014

कर्तव्यों और अधिकारों का सदुपयोग कर के बने सुव्यक्ति.0

कर्तव्यों और अधिकारों का सदुपयोग कर के बने सुव्यक्ति

छोड़े पुरुषों की चिन्ता
महादेवी वर्मा नें कहा था कि पुरुषों की चिन्ता छोड़ दो। घर में किसी लड़के के आवारा हो जाने पर दुःखी होकर लोग कहते हैं कि आवारा हो गया है, जाने दो। पर क्या किसी लड़की को भी कोई ऐसा कहता है? उसकी मां, घर वाले कभी नहीं कहते हैं कि आवारा हो गई, इसे होने दो। क्यों? लड़की मात्र एक व्यक्ति नहीं, संस्था है। पुरुषों की चिन्ता छोड़ो। आप तो सचेत – सजग नागरिक बनों। अपनी शक्ति से ही आपको नव निर्माण करना है।

अधिकारों की नहीं है कमी
आज देश में महिलाओं को मिले अधिकारों की कमी नहीं है। पर कितनी महिलाएं है, जो अधिकारों का उपभोग कर पाती है। आप अपने कर्तव्यों के बल पर अधिकार अर्जित कीजिए। कर्तव्य और अधिकारों का सदुपयोग से ही आप सम्मान अर्जित कर सकेंगी। यदि आपको अपने कर्तव्यों का भान है तो कोई पुरुष आपको भोग्या नहीं बना सकता है। वह आपका व्यक्ति के रुप में सम्मान ही करेगा।

जननी को जनमने दें
जननी की कीर्ति गाथा गानें में हमारा समाज कहीं से पीछे नहीं है। धन, बल और विद्या की देवियाँ - लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती। पर ऐसे वातावरण में भी लड़कियों को बोझ समझने की भावना कैसे आ गई। बेटे की तुलना में भोजन, शिक्षा और सम्मान में भेदभाव क्यों? लड़के लड़कियों के अनुपात में आ रही विषमता हमारे संस्कृति पर एक गंभीर प्रश्न है। समाज में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए एक सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है। बेटी के जन्म पर भी बधावे गाए जाएं, लड्डू बांटें, शंख बजाएं। 
जननी को जनमने दो, 
जनमी को जीने दो। 
जनमी बेटियों को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान की सभी सुविधाएं मिले। तभी माताएं निर्भिक होकर जननी को जनम देगी।

बेटा जैसा नहीं बनाएं बेटियों को

लड़कियों के विकास का अर्थ उन्हों लड़कों जैसा बनाना नहीं है। लड़की न लड़का बन सकती है, नहीं उसकी जरुरत है। समाज निर्माण में दोनों की अपनी अपनी अहम भूमिकाएं है। व्यक्तित्व विकास और सार्वजनिक क्षेत्र में समान काम का समान अवसर होना चाहिए। पद, वेतन, पदोन्नति और व्यवहार में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। 
किन्तु व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया और पद्धति, दोनों में तो कुछ भेद होगा ही। बेटियों को सभी सुख सुविधाएं दो, किन्तु उनके बेटी को रुप को सुरक्षित रखते हुए। मानवी के रुप को संरक्षित करते हुए। लड़कियों का पैंट, जिंस या सलवार कुर्ता पहनना समय की आवश्यकता है। आज कार्य क्षेत्र में साड़ी में लिपटे रहने से काम नहीं चलेगा। पर जिंस पहनते समय भी अपने के लड़का समझने की मानसिकता का त्याग करना सीखना होगा। 
माँ बहन बेटी कभी पत्नी कभी, कभी है प्रेयसी
जानती क्या-क्या हुनर है लड़कियों की जिन्दगी 
बेटियों को बेटा जैसा मानने का अर्थ है, उनहें शिक्षा, रोजगार और विकास के सारे अवसर बेटों के समान देना। जीवन के हर क्षेत्र में विकास। पर उनमें मानवी के, बेटियों के स्वाभाविक गुणों का भी साथ साथ विकास हो, इसका ध्यान रखें। बेटियों को बेटों से पीछे नहीं रखना है, किन्तु उन्हें बेटा कतई नहीं बनाना है।

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के अंतर को समझे
स्वतंत्रता का अर्थ होता है स्वयं की क्षमता का अभिरुचि एवं समय के अनुरुप विकास के अवसर का उपयोग करना। अधिकार उपभोगऔर कर्तव्य पालना में बाहरी बाधाओं का नहीं होना। स्वच्छंदता निरकुंश इच्छाओं को किसी भी मूल्य पर पुरा करने का प्रयास है। महिलाओं को स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर को समझना होगा। महिला हो या पुरुष, स्वच्छंदता, सभी के लिए हानिकारक है। स्वच्छंदता अंत में विकास को ही अवरुद्ध कर देती है। यह पारिवारिक जीवन में कलह घोल देती है और सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती है।
ठीक है आजाद होना, हो मगर उद्दण्ड तो
कब भला पायी सँवर है लड़कियों की जिन्दगी


शिक्षा, स्वालम्बन और स्वास्थ्य
महिलाओं की उन्नति के तीन मुख्य आधार है, शिक्षा, स्वालम्बन और स्वास्थ्य। परिवार में बेटियों को अच्छी शिक्षा, स्वलम्बन के लिए कौशल प्रशिक्षण और स्वास्थ्य के प्रति सजगता का विशेष ध्यान रखें। शिक्षित महिलाएं स्वयं का ही नहीं, पुरे परिवार का भविष्य संवार देती है। परिवार महिला पर ही टिका होता है। परिवार सुखी तो समाज खुशहाल। 
प्रायः महिलाए स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होती है। परिवार के अन्य सदस्यों के हर सुख दुःख का ध्यान रखने वाली गृहणी स्वयं की देह की उपेक्षा करती है। इस दिशा में विशेष जागृति की आवश्यकता है।
उन्हीं से उजालों की उम्मीद है
दिए आँधियों में जो जलते रहे

उन्हीं को मिलीं सारी ऊचाईयां
जो गिरते रहे और संभलते रहे 

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