अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर प्रहार
मतदान
पूर्व और पश्चात सर्वेक्षण
लोकतांत्रिक देशों में व्यापक
रुप से प्रचलित है। यह जन
भावनाओं का आकलन करने की
सांख्यकि विधि पर आधारित है।
निर्वाचन आयोग में कांग्रेस
समर्थित अधिकारियों की भरमार
है। इसलिए इस बार निर्वाचन
आयोग प्रचार प्रसार के कार्यों
को बाधित करने का हर संभव उपाय
कर रहा है।
सर्वेक्षणो
पर रोक लगाने का सुझाव जनता
की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
के मौलिक अधिकारों का हनन
है। यह जनता के विवेक और निर्णय
लेने की क्षमता का भी सरासर
अपमान है। चुनाव आयोग जनता
को अपनी पंसद के प्रत्याशी
अथवा दल का प्रचार करने से
रोकने के लिए आदर्श आचार संहिता
के नाम पर मनमानी कर रहा है।
वह कैसा लोकतंत्र होगा,
जिसमें
नागरिकों को अपने पसंद की
विचारधार,
प्रत्याशी
अथवा दल का प्रचार करने का
अधिकार नहीं होगा?
कांग्रेस
पार्टी सदैव अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को एक बड़ी बाधा
मानती रही है। 1975
का
आपातकाल,
राजीव
गांधी द्वारा समाचार प्रकाशन
पर अंकुश लगाने का प्रयास और
अभी सर्वेक्षणों पर रोक लगाने
का समर्थन कांग्रेस के लोकतंत्र
विरोधी दृष्टिकोण के उदाहरण
है।
कांग्रेस
विरोधी जनमत से घबरायी कांग्रेस
चुनाव सर्वेक्षणों पर रोक
लगा कर चुनावी वैतरणी पार करना
चाहती है।
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