जून 26, 2010
कांग्रेस में आज भी आपातकालिन मानसिकता
कांग्रेस पार्टी का चरित्र मूलतः लोकतंत्र विरोधी है। यह सत्ता पर एकाधिकार की मनोवृति से ग्रस्त है। 1975 में आपातकाल लगाने, समाचार माध्यमों का गला घोंटने और सारे देश को बंदीगृह में रुपान्तरित करने की दोषी है कांग्रेस। किन्तु इस अक्षम्य पाप के लिए इसने आज तक राष्ट्र से क्षमा नहीं मांगी है।
आपातकाल की 36वीं वर्षगांठ हमें फिर तानाशाही का आभास करवा रही है। 4 जून की रात्री को दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस के क्रूर चेहरे का यथार्थ सामने आया था। यह सर्वविदित है कि देश में सर्वोच्च सत्ता के सूत्र प्रधानमंत्री के हाथ में नहीं है। कांग्रेस अध्यक्षा संविधानेत्तर सत्ता का केन्द्र बन गई है। कांग्रेसी मंत्रियों के 2011 के वक्तव्यों और 1975 के वक्तव्यों में आश्चर्य जनक समानता है।
आपातकाल के काले दिनों को विस्मृत करना लोकतंत्र के लिए घातक होगा। आतंक के दुर्दिनों को भूलना निरंकुश सत्ता को फिर से न्यौता देने के समान है। नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त और पीजे थॉमस को मुख्य सतर्कता आयुक्त बनाने में कांग्रेस नें नैतिकता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी थी। कांग्रेस समर्पित न्यायपालिका, चाटुकारी नोकरशाही और आज्ञाकारी समाचार जगत में विश्वास रखती है।
It is really shameful that after so many years of Indian Independence and getting Republic, India is still under dictatorship of "10 Janpath", now let's bring the morning which really makes us feel truly Republic and Democratic.
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